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सिलक्यारा टनल हादसा । Silkyara Tunnel Rescue

12 नवंबर 2023 जिस सुबह हम लोग दिवाली मनाने की तैयारियां कर रहे थे । उसी सुबह उत्तर काशी में एक टनल के अंदर करीब 41 मजदूर काम पर लगे थे, एक हाईवे प्रोजेक्ट बनाने में । सुबह के करीब 5:30 बजे अचानक से यह सुरंग ढह जाती है।


Source : X
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ये सभी मजदूर इस सुरंग के अंदर ट्रैप हो जाते हैं, बच निकलने का कोई रास्ता नहीं। जो पत्थरों और की दीवार इनके और बाहर के रास्ते के बीच गिरी है वो 60 मीटर लंबी है । देखते ही देखते उत्तराखंड के इस छोटे से शहर में लोगों की भीड़ जमने लगती है। अगले दिन 13 नवंबर को ऑफिशियल रेस्क्यू मिशन की शुरुआत करी जाती है। 200 से ज्यादा लोग काम पर लगते हैं और 17 दिन लग जाते हैं इन लोगों को बाहर निकालने में ।

आखिर कैसे किया गया यह ? और उससे बड़ा सवाल जो है उसे भी आंसर करते हैं , आखिर यह हादसा हुआ क्यों इसकी रूट कॉज वही है । जिसकी वजह से जोशी मठ भी डूब रहा है। एक ऐसा कारण जिसकी बात हमारे बिकाऊ न्यूज़ चैनल्स नहीं कर सकते आइए जानते हैं । 



ये हादसा हुआ था उत्तराखंड के उत्तर काशी डिस्ट्रिक्ट में बड़कोट सिल्क यारा टनल नक्शे में आप देख सकते हैं, ये कहां
लोकेटेड है। ये एक टू लेन बाय डायरेक्शनल टनल है । जो बनाई जा रही है मोदी सरकार के 12000 करोड़ चार धाम प्रोजेक्ट के तहत इस प्रोजेक्ट की डिटेल में हम थोड़ा आगे बात
करेंगे लेकिन मोटे-मोटे तौर पर यह हाईवे प्रोजेक्ट है जो चार नॉर्थ इंडियन धाम को कनेक्ट करता है। बद्रीनाथ, केदारनाथ
यमुनोत्री और गंगोत्री । इन चारों धाम के बीच में सड़कें बनाई जाएंगी जिनसे इनके बीच का फासला कम होगा। 

दिसंबर 2016 में प्रधानमंत्री मोदी ने इस प्रोजेक्ट का फाउंडेशन स्टोन ले किया था और इस पर्टिकुलर टनल को अनाउंस किया गया था। फरवरी 2018 में अंडर द भ्रम खाल यमुनोत्री नेशनल हाईवे सेक्शन इस टनल का मकसद गंगोत्री और यमुनोत्री के बीच दूरी लगभग 20 किमी और 45 मिनट से कम कर देना और इसकी एस्टीमेट कॉस्ट 1383 करोड़ बताई जाती है इसे बनाया जा रहा है। नवयुग इंजीनियरिंग कंपनी लिमिटेड के द्वारा अंडर द गाइडेंस ऑफ नेशनल हाईवेज एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड कंस्ट्रक्शन का काम सिल्क यारा की साइड से करीब 2340 मीटर कंप्लीट हो चुका था और बड़कोट की साइड से 1600 मीटर कंप्लीट हो चुका था और यह हाद हुआ था। सिल्क यारा की एंट्रेंस से करीब 270 मीटर दूर इस सुरंग के ढहने के बाद जो मलबा था। वो करीब 60 मीटर लंबा था लेकिन क्योंकि अंदर की 2000 मीटर की कंस्ट्रक्शन ऑलरेडी कंप्लीट हो चुकी थी । तो जो फंसे हुए मजदूर थे। उनके पास घूमने फिरने के लिए ये 2000
मीटर की स्पेस थी थैंकफूली ऐसा नहीं था कि ये बहुत ही छोटी सी जगह में फंसे हुए हो जिस जगह पर ये फंसे थे। उस एंक्लोजर की हाइट भी करीब 82 मीटर थी ।

अब आमतौर पर ऐसे हादसों को एक्ट ऑफ गॉड बुलाया जाता है यानी कि ये नेचुरल डिजास्टर है लेकिन यह
डिजास्टर कितना नेचुरल है सही मायनों में
और कितना मैन मेड है यह अपने आप में एक
चर्चा का मुद्दा है। सरकार की प्रेस रिलीज
के अकॉर्डिंग ये वर्कर्स रिप्रो फाइलिंग
वर्क कर रहे थे रिप्रो फाइलिंग का मतलब है
टनल को एडजस्ट करना ये आमतौर पर तब किया
जाता है । जब आसपास के पत्थरों में कुछ ऐसा
बिहेवियर देखा गया जो पहले ना नोटिस किया
गया हो । अब एग्जैक्ट कारण इस कोलैक्स के
पीछे तो और रिसर्च करने के बाद ही पता
चलेगा लेकिन प्रीलिमिनरीज हमें बताती हैं
कि ये कोलैक्स हो सकता है। जियोलॉजिकल
फॉल्ट की वजह से हुआ हो। जिसे शियर जोन कहा
जाता है ये वो हिस्सा धरती के क्रस्ट का
जो पतला या थोड़ा कमजोर होता है इस
कंस्ट्रक्शन की वजह से आसपास के पत्थरों
पर बहुत स्ट्रेन पड़ा और वो पत्थर नीचे ढह
गए एक लैंड स्लाइड हो गई एक और रीजन इसके
पीछे आईआईटी रुर्की के प्रोफेसर एम एल
शर्मा बताते हैं कि पत्थरों में
अनडिटेक्टेड कैविटी हो सकती है यानी कि
पहाड़ों के पत्थरों में कोई गैप रहा होगा
ऐसी कैविटीज की वजह से यह एरिया अपने आप
में ही कमजोर हो जाता है और लैंडस्लाइड का
रिस्क बढ़ जाता है । ये दो पॉसिबल कॉसेस हैं
लेकिन हमारा सिर्फ अंदाजा है ये असली कारण
हमें इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट्स आने के बाद
ही पता चलेगा । 

अब जब पहाड़ों में टनल्स की
खुदाई करी जाती है तो दो मेन तरीके होते
हैं पहला है ड्रिल एंड ब्लास्ट मेथड
(DBM) और दूसरा है टनल बोरिंग मशीन का
इस्तेमाल करना। DBM पहले वाले मेथड में
हम क्या करते हैं कि हम पत्थरों के अंदर
गड्ढे की ड्रिलिंग करते हैं और उसके अंदर
हम एक्सप्लोजिव्स डाल देते हैं फिर लिटरली
पत्थरों को ब्लास्ट किया जाता है जैसे कि
मानो छोटा सा बम डाल दिया उनके अंदर
उन्हें फोड़ा जाता है ये वाला सिंपल और
ट्रेडिशनल तरीका रहा है लेकिन टनल बोरिंग
मशीन जो है व ज्यादा महंगी होती है लेकिन
ज्यादा सेफ भी होती है। यह मशीन पत्थरों के
अंदर एक रोटेटिंग हेड के जरिए गड्ढा करती
है और प्रीकास्ट कंक्रीट सेगमेंट्स लगाती
चली जाती है। हिमालया की पहाड़ियों में हम
अनफॉर्चूनेटली इन मशीनस का इस्तेमाल नहीं
कर सकते क्योंकि जो जियोलॉजिकल कंडीशंस है
वो काफी एक्सट्रीम है।

 आपने स्कूल में पढ़ा
होगा कि हिमालया की पहाड़ियां यंगेस्ट
माउंटेन रेंज है दुनिया की सिर्फ 40 से 50
मिलियन इयर्स पुरानी है । अभी भी ग्रो कर
रही रही इसकी वजह से यहां की कंडीशंस काफी
सेंसिटिव है और अनप्रिडिक्टेबल है। ऐसी जगह
पर भारी कंस्ट्रक्शन करने के कारण से जो
हादसे होते हैं उन्हें सिर्फ एक्ट ऑफ गॉड
का नाम नहीं दिया जा सकता पर फिर भी इंसान
ऐसी हालातों में किसी ना किसी बहाने से
भगवान का एंगल ढूंढ ही लेता है।

 एक लोकल का कहना है कि यहां एक
मंदिर हुआ करता था बाबा बक नाक का इस
हाईवे को कंस्ट्रक्ट करने के लिए उस मंदिर
को हटवाया गया इसलिए यह हादसा हुआ नेचुरल
या मैनम डिजास्टर्स के पीछे एक डिवाइन
कारण ढूंढना पहली बार नहीं ऐसा किया गया
हो । 2013 में जो केदारनाथ फ्लड्स हुए थे
कुछ लोकल्स ने ब्लेम किया कि इसलिए हुए
क्योंकि धारी देवी की शरा इन को रीलोकेट
किया गया अलकनंदा हाइड्रोइलेक्ट्रिक
प्रोजेक्ट की कंस्ट्रक्शन के दौरान और इसी
के चलते ही जहां एक समय पर 200 से ज्यादा
लोग इस टनल रेस्क्यू में काम कर रहे थे।
वहीं 18 नवंबर को टनल की ओपनिंग पर एक
छोटे मंदिर का उद्घाटन किया गया और पूजा
कराई गई लेकिन यह काम लोकल लोगों ने नहीं
किया। यह काम एनएचआई डीसीएल ने किया वही
कंपनी जो इस टनल कंस्ट्रक्शन के पीछे
रिस्पांसिबल है पर ना तो यह मंदिर बनाने
की नौबत आती है और ना ही कोई रेस्क्यू
ऑपरेशन करना पड़ता अगर प्लान के मुताबिक
एक एस्केप पैसेज बनाया गया होता तो जब
सरकार ने इस टनल प्रोजेक्ट को सैंक्शन
किया था तो क्लियर लिखा था वहां पर कि एक
एस्केप पैसेज होना चाहिए इमरजेंसी के
केसेस में भागने का एक रास्ता होना चाहिए
सरकारी गाइडलाइंस के अनुसार ऐसे इमरजेंसी
एग्जिट रेकमेंडेड है हर उस सुरंग में जो ढ
किलोमीटर से ज्यादा लंबी होती है पीसी
नवानी फॉर्मर डायरेक्टर ऑफ जियोलॉजिकल
सर्वे ऑफ इंडिया कहते हैं कि यह पॉसिबल
नहीं है इस तरीके के प्रोजेक्ट्स को मैनेज
करना बिना एस्केप रूट्स केयह पूरा हादसा
होता ही नहीं अगर यह किया जाता तो लेकिन
खैर अपनी कहानी पर वापस आते हैं सिचुएशन
यह थी कि यह वर्कर्स फंस गए कैसे निकाला
जाए ऑपरेशन जिंदगी की शुरुआत करी जाती है।

उत्तराखंड सरकार एक फाइव ऑप्शन प्लान
बनाती है इन वर्कर्स को रेस्क्यू करने के
लिए जिन्हें पांच अलग-अलग एजेंसीज के
द्वारा कैरी आउट किया जाना था। ये एजेंसीज
थी, ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC), 
सतलुज जल विद्युत निगम (SJVNL),  रेल
विकास निगम लिमिटेड (RVNL),  नेशनल हाईवेज
एंड इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कॉरपोरेशन
लिमिटेड (NHIDCL) और टेहरी हाइड्रो
डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (THDCL) । इसके
अलावा Border Roads Organization (BRO) और
National Degaster Response Force (NDRF) 
भी साइडलाइन पर वेट कर रही थी और असिस्ट
कर रही थी । जब भी उनकी मदद की जरूरत हो
रेस्क्यू ऑपरेशन की सबसे पहली स्टेप थी कि
फंसे हुए लोगों तक ऑक्सीजन की सप्लाई
पहुंचाना ताकि वह च से सांस ले सके ये
किया गया। एक कंप्रेस्ड एयर पाइप के थ्रू
जो पत्थरों के बीच से फंसाकर पहुंचाई गई
उनकी तरफ इसके साथ-साथ एक और चार इंच की
पाइप मलबे के थ्रू घुसाई गई जिसके थ्रू
स्नैक्स और ड्राई फ्रूट्स डिलीवर किए गए
ये सब पहले दिन यानी 12 नवंबर को ही किया
जा चुका था ऊपर से टनल के अंदर
इलेक्ट्रिसिटी की सप्लाई थी तो ऐसा नहीं
था कि जो फंसे हुए लोग थे वो अंधेरे में
जी रहे थे । थोड़ी बहुत रोशनी वहां पर मौजूद
थी।

 अगले दिन एक रेस्क्यू का प्लान बनाया
गया कि हॉरिजॉन्टल एक गड्ढा हम ड्रिल
करेंगे उसके थ्रू हम एक पाइप फिट करेंगे
और वह पाइप इतनी बड़ी होगी कि लोग उसके
थ्रू से क्रॉल करके बाहर तक निकल कर आ जाए
प्लान यह था कि ड्रिलिंग हॉरिजॉन्टल करी
जाएगी और एक ऑगर मशीन का इस्तेमाल किया
जाएगा यह मशीन कुछ ऐसी दिखती है पहले दिन
से उस पहली पाइप के थ्रू वर्कर्स के थ्रू
बात कर पाना भी पॉसिबल था कांस्टेंटली
पाइप के थ्रू लोग उनसे बात करके उनका
हौसला बढ़ा रहे थे ।

 THDCL टनल की दूसरी साइड से काम कर रहा था
माइक्रो टनलिंग के कांसेप्ट का इस्तेमाल
करके और एसजेवीएन और ओएनजीसी वर्टिकल
ड्रिलिंग की तैयारी कर रहे थे । अगर जरूरत
पड़े तो वर्टिकल ड्रिलिंग का मतलब पहाड़
के ऊपर से आया जाए और ड्रिल करी जाए नीचे
तक लेकिन जियोलॉजिस्ट वर्टिकल ड्रिलिंग को
लेकर हमेशा से ही नेगेटिव रहे थे थोड़े
ऐसा इसलिए क्योंकि अगर ऊपर से ड्रिलिंग
करी जाएगी तो जो कमजोर पत्थर है उसकी वजह
से और प्रॉब्लम्स हो सकती है एक और लैंड
स्लाइड हो सकती है नीचे अगर ढंग से इसे
नहीं किया गया तो ।

14 नवंबर को हॉरिजॉन्टल
ड्रिलिंग की शुरुआत होती है लेकिन जिस
मशीन का इस्तेमाल किया जा रहा था वह काफी
धीरे काम कर रही थी और ड्रिलिंग के दौरान
और पत्थर और मिट्टी ऊपर से नीचे गिरे जा
रही थी जिसकी वजह से मलबे की ये दीवार और
लंबी होती जा रही थी। 15 नवंबर को एक दूसरी मशीन
लाने का डिसीजन लिया जाता है। ये मशीन
दिल्ली से मिलिट्री हवाई जहाज के थ्रू लाई
जाती है तीन अलग-अलग हिस्सों में और इसे
असेंबल करना पड़ता है जिसमें एक दिन का
समय लग जाता है तो 16th नवंबर को ये मशीन
तैयार होती है डिगि करने के लिए ये मशीन
इतनी इतनी ताकतवर थी कि ये 5 मीटर डबरी एक
घंटे में खोद सकती थी। 

एक दिन तक तो चीजें
अच्छी चली लेकिन अगले दिन इस ऑपरेशन को
पॉज करना पड़ता है टनल से एक क्रैकिंग की
आवाज सुनाई देती
है कहीं ऐसा तो नहीं कि अगर हम ड्रिलिंग
करते रहे तो टनल और नीचे ढह जाएगी फिर एक
दिन का समय लिया जाता है ठीक से चीजें
जांचने के लिए अब तक पांच दिन बीत चुके थे
और कोई विजिबल प्रोग्रेस नहीं देखने को
मिला था अगले दिन रेस्क्यू ऑफिशल्स और
मजदूरों के रिलेटिव्स के बीच में झगड़ा
देखने को मिलता है लोग गुस्सा थे एक इंसान
चिल्लाता है कि सात दिन हो गए हैं मेरा
भाई वहां पर ट्रैप्ड है लोगों में गुस्सा
इतना बढ़ गया था कि लोगों को काम डाउन
करने के लिए उत्तर काशी के डिस्ट्रिक्ट
ऑफिसर डीपी बुलानी कहते हैं कि अब हम
वर्टिकल ड्रिलिंग भी ट्राई करेंगे एक ही
ऑप्शन के भरोसे नाराज है तो ये हुआ कि
हॉरिजॉन्टल के अलावा कुछ वर्टिकल ओपनिंग
भी दी जाए इनको रेस्क्यू करने के लिए
वर्टिकल ड्रिलिंग को लेकर प्लान ये था कि
ऊपर से 90 से 105 मीटर के बीच गड्ढा खोदा
जाएगा यहां बीआरओ की मदद से ली गई टेंपररी
सड़कें बनाने के लिए ताकि ऊपर तक ड्रिलिंग
मशीनस को ले जाया जा सके यह काम अब
साथ-साथ चल रहा था वर्टिकल ड्रिलिंग की
प्रिपरेशंस करी जा रही थी नीचे से
हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग भी करी जा रही थी ।

एज यूजुअल 20 नवंबर एक बड़ा दिन बनता है इस
रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए जब आर्नोल्ड डिक्स
एक टनलिंग एक्सपर्ट और इंटरनेशनल टनलिंग
एंड अंडरग्राउंड स्पेस एसोसिएशन के
प्रेसिडेंट इस रेस्क्यू ऑपरेशन को जॉइन
करते हैं वो अपने एक्सपीरियंस से सजेशंस
देते हैं कि यहां पर एगजैक्टली क्या किया
जाना चाहिए उसी दिन शाम को रेस्क्यूर्स एक
6 इंच मीटर की पाइप मलबे के थ्रू घुसाने
में सक्सेसफुल रहते हैं इसकी मदद से कई
चीजें और पॉसिबल हो जाती हैं क्योंकि यह
पाइप ज्यादा बड़ी थी इसका मतलब अब प्रॉपर
खाना दिया जा सकता था अंदर फसे हुए लोगों
को इस दिन मजदूरों को अपनी पहली गर्म मील
मिलती है जो कि गरमागरम खिचड़ी होती है एक
वीडियो भी फिल्म किया जाता है मजदूरों का
एक एंडोस्कोपिक कैमरे का इस्तेमाल करके जो
इस पाइप के अंदर डाला गया था।

 यह पहला
वीडियो देश के सामने आने वाला कुछ ऐसा था
कैमरे को पा धीरे धीरे बाहर निकाले
को को वापस पाइप में गा के रख दे हम कैमरा
वापस निकाल रहे हैं अब सिर्फ खाना नहीं
बल्कि दवाइयां मोबाइल फोस चार्जर्स और
वॉकी टॉकीज सब इस पाइप के थ्रू भेजे जा
रहे थे उन्हें वॉकी टॉकीज के थ्रू वर्कर्स
से अब डायरेक्टली बात करी जा सकती थी इसी
दिन डिसाइड किया जाता है कि दो और टनल्स
खोदी जाएंगी ताकि एडिशनल एस्केप रूट्स
बनाए जा सके और अगले दिन 21 नवंबर को 4900
मिमी की पाइप्स ऑलरेडी इस मलबे के थ्रू
घुसाई जा चुकी थी लेकिन रेस्क्यू ऑपरेशन
कामयाब होने से अभी भी बहुत दूर था ये
अलग-अलग पाइप्स बीच में एक्चुअली इंटरफेयर
करने लगी ड्रिलिंग के काम के 22 नवंबर को
इसकी वजह से थोड़ा सा डिले देखने को मिला।


23 नवंबर को एक और सेटबैक होता है जिस
प्लेटफार्म पर ड्रिलिंग मशीन रखी गई थी वो
कमजोर बन गया था तो पूरी रात लग जाती है
उस स्ट्रक्चर को रिपेयर करने में 24 नवंबर
को वापस से ड्रिलिंग मशीन को रिअसेंबल
करना पड़ता है एक के बाद एक चीज बिगड़ती
जा रही थी एक चीज ठीक होती तो अगले दिन
दूसरी कोई प्रॉब्लम खड़ी हो जाती। 25 नवंबर
को एक बहुत बहुत बड़ा सेटबैक देखने को
मिलता है यह ओगर मशीन पूरी तरीके से टूट
जाती है और टनल के अंदर खुद ही फस जाती है
आर्नोल्ड डिक्स रिपोर्टर्स को बताते हैं
कि मशीन ऑलरेडी तीन बार टूट चुकी थी
रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान और अब तो पूरी
तरीके से खत्म थी द र इ ब्रोकन ब्रोकन
ब्रोकन द मशीन इज बस्टड इट्स रिपेयरेबल इट
इज डिस्ट्रक्ट नो मोर वर्क फ्रॉम ओगा 26
नवंबर को अथॉरिटीज कहते हैं दोबारा से कि
वर्टिकल ड्रिलिंग ट्राई करी जाएगी वर्टिकल
ड्रिलिंग में 26 नवंबर तक करीब 20 मीटर
ड्रिल किया जा चुका था लेकिन मेन फोकस अभी
भी हॉरिजॉन्टल ड्रिलिंग पर ही था क्योंकि
सिर्फ 12 मीटर और ड्रिल करना बचा था 27
नवंबर को डिसाइड किया जाता है कि मशीन तो
गई लेकिन अब मैनुअली इसे हाथों से ड्रिल
करते हैं रैट होल माइनर्स (Rate Hole Miners) का इस्तेमाल
करके रट होल माइनिंग एक बहुत ही खतरनाक
तरीका है कोल एक्सट्रैक्शन का पुराने जमान
में इस्तेमाल किया जाता था इसमें लिटरली
वर्टिकल गड्ढे बनाए जाते थे हाथों के थ्रू
और ये इतने ही बड़े होते थे कि एक आदमी
फंसकर बाहर निकल सके इनसे या नीचे जा सके
इंडिया में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने एक
बैन लगा रखा है रैट होल माइनिंग पर
क्योंकि इसका एनवायरमेंटल इंपैक्ट बहुत
बेकार होता है और लेबर के लिए भी ये अनसेफ
होता है लेकिन इस सिचुएशन में रेस्क्यू
ऑपरेशन के तौर पर यह बेस्ट ऑप्शन था ।

12 रैट
होल माइनिंग एक्सपर्ट्स बड़ी मेहनत से काम
करते हैं और 28 नवंबर की शाम तक खबर आ
जाती है कि सिर्फ 2 मीटर और खोदना बचा है
इस वक्त खुशखबरी ज्यादा दूर नहीं थी और
फाइनली रात को करीब 8 बजे पहले वर्कर को
स्ट्रेचर के द्वारा निकाला जाता है और
एक-एक करके सब के सब 41 मजदूरों को
रेस्क्यू कर लिया जाता है। इस टनल से आफ्टर
स्पेंडिंग 17 डेज ट्रैप्ड इन अ कोलप ंगल
इन नदन इंडिया रेस्क्यूर्स हैव नाउ फ्रीड
ऑल 41 वर्कर्स मुन्ना कुरेशी 12 में से एक
रैट होल माइनिंग एक्सपर्ट थे इनका कहना था
कि यह मूमेंट काफी इमोशनल थी यह वो इंसान
थे जिन्होंने आखिरी पत्थर हटाया और आखिरी
पत्थर हटाने के बाद ये उन्हें देख सकते थे
इनका कहना था कि ये लोग हमसे गले मिले और
इन्होंने हमें धन्यवाद किया बाहर निकालने
के बाद हम पिछले पिछले 24 घंटों तक
कंटीन्यूअसली काम कर रहे थे मेरी खुशी का
कोई ठिकाना नहीं है मैंने अपने देश के लिए
यह किया है बाहर एम्बुलेंसस और हेलीकॉप्टर
स्टैंड बाय पर थे फूलों की माला इन्हें
पहनाई जा रही थी और बाहर एक
फ्रेशलीशियस
ने इन 41 वर्कर्स के सही सलामत बाहर
निकलने पर जश्न मनाया रेस्क्यूर्स को
शाबाशियां दी गई लेकिन इस हैप्पी एंडिंग
को सेलिब्रेट करते हुए हमें यहां यह नहीं
भूलना चाहिए कि ये हादसा एक्चुअली में हुआ
क्यों था । 

इसके पीछे का असली कारण और रूट
कॉज क्या थी इसके लिए कोई इन्वेस्टिगेशन
का इंतजार करने की जरूरत नहीं क्योंकि हम
एक्चुअली में जानते हैं इस हादसे के पीछे
की रूट कॉज को इस सवाल का जवाब छुपा है इस
चार धाम हाईवे प्रोजेक्ट में वही कारण
जिसकी वजह से जोशी मठ आज डूब रहा है। हमारी
सो कॉल्ड डेवलपमेंट जो उत्तराखंड में
देखने को मिल रही है चारधाम जैसे
प्रोजेक्ट्स की वजह से एनवायरमेंट का
सत्यानाश हो रहा है है और लैंड स्लाइड और
इस तरीके के हाद से होने के चांसेस बढ़
रहे हैं ये मैं नहीं कह रहा इस आर्टिकल को
देखिए टनल कोलैब इन उत्तराखंड इज अ पार्ट
ऑफ बिगर प्रॉब्लम इन द हिमालयाज सड़कें
बनाते समय ढंग से स्लोप एनालिसिस नहीं करी
गई है कुछ जगहों पर एक्सट्रीम स्लोप कटिंग
देखी गई है यानी कि 45° के एंगल्स तक पर
स्लोप काटे गए हैं सड़कें बिछाने के लिए
इसकी वजह से लैंड स्लाइड्स बड़ी आसानी से
आते हैं इनफैक्ट पिछले 2 सालों में हर दिन
ऑन एवरेज एक लैंड स्लाइड देखने को मिला है
इस रीजन में इस आर्टिकल के अनुसार ऐसा
नहीं है कि एनवायरमेंटल एक्टिविस्ट ने
पहले आवाज नहीं उठाई थी इस प्रोजेक्ट को
रोकने के लिए फरवरी 2018 में देहरादून का
एक एनजीओ है सिटीजंस फॉर ग्रीन दून
इन्होंने एनजीटी में कंप्लेन करी थी कि इस
प्रोजेक्ट से हिमालयन इकोलॉजी पर एक भयानक
असर पहुंचेगा इन्होंने कहा कि उस समय पर
ऑलरेडी 25000 पेड़ काटे जा चुके थे इस
प्रोजेक्ट के लिए और ये फॉरेस्ट कंजर्वेशन
एक्ट का एक वायलेशन था इन्होंने मेंशन
किया कि कैसे इंडिया के एनवायरमेंटल लॉ के
अनुसार हर हाईवे प्रोजेक्ट जो 100 किमी या
उससे ऊपर का बनाया जाता है है उसमें एक
एनवायरमेंट इंपैक्ट असेसमेंट कराने की
जरूरत है लेकिन सरकार ने इस रूल को बड़ी
ही बेशर्मी से बायपास किया इन्होंने कहा
कि हम एक बड़ा प्रोजेक्ट नहीं बना रहे
हजारों किलोमीटर के हाईवेज का हम बना रहे
हैं 53 छोटे-छोटे प्रोजेक्ट और हर हाईवे
की लेंथ 100 किमी से कम है इस एक बड़े
प्रोजेक्ट को छोटे-छोटे अलग-अलग प्रोजेक्ट
करके दिखाया गया इस कानून को बायपास करने
के लिए इसलिए सितंबर 2018 में एनजीटी ने
कहा कि इस प्रोजेक्ट को एनवायरमेंटल
क्लीयरेंस की कोई जरूरत नहीं इसके बाद
अगस्त 2019 में इस डर को चैलेंज किया जाता
है देश के सुप्रीम कोर्ट में सुप्रीम
कोर्ट एक 26 मेंबर हाई पावर्ड कमेटी
अपॉइंटमेंट इस्ट रवि चोपड़ा के द्वारा इस
कमेटी का काम था यह जांचना कि कितना
नुकसान पहुंचेगा एनवायरमेंटली और सोशली
उत्तराखंड को इस प्रोजेक्ट की वजह से और
उसके बाद अपनी सजेशंस देना जुलाई 2020 में
इस कमेटी के चार मेंबर्स इंक्लूडिंग रवि
चोपड़ा जी सरकार की जो खुद की गाइडलाइन है
मार्च 2018 की गिवन बाय मिनिस्ट्री ऑफ रोड
एंड ट्रांसपोर्ट हाईवेज उसके अनुसार
पहाड़ियों पर जो हाईवेज बनाए जा रहे हैं
उनकी टोटल विड्थ 7 मीटर से ज्यादा नहीं हो
सकती सरकार चाहती थी इन पहाड़ियों में 12
मीटर चौड़े हाईवेज बनाए जाए इस कमेटी के
बाकी 21 मेंबर्स एक्चुअली में सरकार के
फेवर में थे तो रवि चोपड़ा डायरेक्टली
एनवायरमेंट मिनिस्ट्री को लिखते हैं अगस्त
2020 में ये कहते हैं कि यहां पर खतरा
सिर्फ पेड़ों को काटा जाना नहीं है सरकार
यहां पर ना सिर्फ पेड़ों को काट रही है
पहाड़ियों को काट रही है बल्कि सड़कें
बनाते वक्त जो कूड़ा जनरेट हो रहा है उस
कूड़े को डंप किया जा रहा है नदियों में
और यह इको सेंस सिटव जनस में भी किया जा
रहा है जैसे कि केदारनाथ वाइल्ड लाइफ
सेंचुरी वैली ऑफ फ्लावर्स नेशनल पार्क
राजाजी नेशनल पार्क इन जगहों पे कूड़े की
डंपिंग चल रही है।

 अगले महीने सितंबर 2020
में सुप्रीम कोर्ट रवि चोपड़ा जी की
रिकमेंडेशन सुन लेता है और कहता है कि इस
प्रोजेक्ट में हाईवे की जो विड्थ है वोह 7
मीटर से ज्यादा नहीं होनी चाहिए इस बात
में सेंस था क्योंकि ज्यादा चौड़ी रोड
बनाने का मतलब था कि ज्यादा स्लोप्स काटे
जाने पड़ेंगे ज्यादा पेड़ों को काटने की
जरूरत पड़ेगी और ज्यादा कूड़े की डंपिंग
होगी इन सब चीजों से हिमालया का जो टरेन
है वो डी स्टेबलाइज होगा लैंड स्लाइड के
चांसेस बढ़ जाएंगे फ्लैश फ्लड के चांसेस
बढ़ जाएंगे वीी ऑब्जर्व यूनानिमिटी
ऑफ हिल कटिंग एंड द सबसीक्वेंट
एनवायरमेंटल डैमेज लेकिन सरकार सुप्रीम
कोर्ट की बात सुनने की जगह अपना एक नया
मास्टर स्ट्रोक अपनाती है सुप्रीम कोर्ट
की बात को बायपास करने के लिए नवंबर 2020
में मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस अपनी एंट्री मार
लेती है और सुप्रीम कोर्ट के सामने अपील
करती है कि देखो हमें डबल लेन रोड बनाने
की जरूरत है क्योंकि आर्मी की ये
रिक्वायरमेंट है चारधाम प्रोजेक्ट को एक
नया एंगल दे देते हैं कहते हैं कि ये तो
देश हित की बात है भाई ये आर्मी की जरूरत
है ये इसलिए हमें ये सड़कें बनानी पड़ेंगी
इतनी चौड़ी अभी तक जनता को बताया जा रहा
था कि ये तो चार धाम यात्रा के लिए हम कर
रहे हैं रिलीजस पिलग्रिम ज के लिए यह
रास्ता बना रहे हैं लेकिन अब अचानक से इस
प्रोजेक्ट का पर्पस बन गया कि ये तो
स्ट्रेटेजिक चीज है नेशनल इंटरेस्ट के लिए
किया जा रहा है इंडियन ट्रूप्स चाइना के
बॉर्डर पर आसानी से मूव कर पाएं इसलिए यह
किया जा रहा है रीज़न बताया जाता है कि
चाइना दूसरी तरफ से अपनी सड़कें बना रहा
है इसलिए हमें भी सड़कें बनाने की जरूरत
है लेकिन यहां एक बहुत बड़ा फर्क है टरेन
में चाइना की जो साइड है वो टिब न प्लाटू
पे मौजूद है वहां पहाड़ियां इतनी ज्यादा
नहीं है वो एक रिलेटिवली स्टेबल एरिया है
सड़कें बनानी आसान है उसका इकोलॉजिकल
इंपैक्ट इतना हानिकारक नहीं होता
मिनिस्ट्री ऑफ डिफेंस की इस अपील के अगले
महीने मिनिस्ट्री ऑफ हाईवेज भी अपने 2018
के डायरेक्टिव्स बदल देती है वो कहते हैं
जो 7 मीटर की जो गाइडलाइन है ना यह 10
मीटर तक हो सकती है अगर अगर किसी
प्रोजेक्ट की कोई स्ट्रेटेजिक इंपॉर्टेंस
हो तो और इसके ठीक एक साल बाद 14 दिसंबर
2021 सुप्रीम कोर्ट भी मानने पर मजबूर हो
जाता है कि ठीक है इस प्रोजेक्ट को जैसा
चल रहा है वैसे ही अलाव किया जाएगा आज के
दिन चारधाम प्रोजेक्ट में जो हाईवेज बन
रहे हैं वह 12 मीटर चौड़े बन रहे हैं इसकी
वजह से यह देखकर कि सरकार ने कितनी
बेशर्मी से रूल्स और गाइडलाइंस को बायपास
किया इस प्रोजेक्ट के लिए रवि चोपड़ा
रिजाइन कर देते हैं उस कमेटी से आज के दिन
इस चारधाम प्रोजेक्ट की वजह से अभी तक 600
हेक्टेयर जंगल काटा जा चुका है ।

56000 से
ज्यादा पेड़ों को काटा जा चुका है और 75
पर चारधाम का जो हाईवे है उसे चौड़ा किया
जा चुका है मिनिस्ट्री ऑफ हाईवेज ने खुद
एडमिट किया था कि 2021 में 200 लैंड
स्लाइड्स देखने को मिली इस एरिया में और
नवंबर 2021 में इन्होंने सुप्रीम कोर्ट के
सामने एडमिट किया कि 125 लैंड स्लाइड्स
सिर्फ चार धाम प्रोजेक्ट के रूट्स के
अराउंड ट्रिगर हुई कंस्ट्रक्शन वर्क की
वजह से याद है। 

अभी भी
बार-बार वार्निंग दी जा रही है एक्सपर्ट्स
और एक्टिविस्ट के द्वारा इन हेडलाइंस को
देख लो 17 मई 2023 अनचेक्ड पिलग्रिम ज
कंस्ट्रक्शन इन उत्तराखंड स्पेल डिजास्टर
फॉर फ्रेजा हिमालयाज वॉर्न एक्सपर्ट्स 4
मई को जोशी मठ के पास एक पहाड़ी क्रंबल कर
गई जब रोड वाइड निंग करी जा रही थी 23
अगस्त 2023 द रेसिपी फॉर डिजास्टर दैट इज
कॉजिंग डिस्ट्रक्शन इन हिमालयन स्टेट्स 19
जनवरी 2023 जोशी मट क्राइसिस इज अ
वार्निंग फ्रॉम द हिमालयाज 25 जुलाई 2023
लैंड स्लाइड वशस अवे चारधाम रोड स्ट्रेच
इन उत्तराखंड उत्तराखंड चारधाम प्रोजेक्ट
व् सम कॉल इट अ रोड टू डिजास्टर 15 नवंबर
2023 अनदर वार्निंग इन द हिमालयाज 23
अगस्त 2023 बद्रीनाथ हाईवे
कोलप्पन डिजास्टर और यह चीज सुप्रीम कोर्ट
भी जानता था आज से 5 साल पहले 2018 के इस
आर्टिकल को देखो फ्रीक्वेंसी
वार्निंग्स के बावजूद भी बदलाव का कोई
संकेत नजर नहीं आता सरकार अपनी पीठ थपथपा
रही है कि उन्होंने रेस्क्यू कर दिया
वर्कर्स को टनल पर काम अब दोबारा से शुरू
हो जाएगा और अफसोस की बात यह है कि आने
वाले सालों में हम शायद से फिर खबरें
सुनेंगे उत्तराखंड में किसी और नए हादसे
की ।


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