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गोरखपुर विश्वविद्यालय प्रशासन होश में आओ! फ़ीस वृद्धि वापस लो!

 


गोरखपुर विश्वविद्यालय प्रशासन होश में आओ!

फ़ीस वृद्धि वापस लो!


दिशा छात्र संगठन द्वारा गोरखपुर विश्वविद्यालय में स्नातक की फीस में हुई वृद्धि के ख़िलाफ़ गोरखपुर  विश्वविद्यालय के मेन गेट के सामने विरोध प्रदर्शन किया गया।

दिशा छात्र संगठन की अंजली ने कहा कि शिक्षा के सवाल पर प्रेमचन्द ने कहा था कि- शिक्षा समाज की रीढ़ होती है इसलिए एक सभ्य समाज में ऊँची से ऊँची तालीम मुफ़्त होनी चाहिए. लेकिन आज हमारे देश में बयार उलटी दिशा में बह रही है. शिक्षा का व्यवसायीकरण-बाज़ारीकरण जोरो-शोरो से किया जा रहा है. इसी क्रम में गोरखपुर विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्र हितों को ताक पर रखकर स्नातक की फ़ीस दो गुना बढ़ा दिया है।  गोरखपुर विश्वविद्यालय उत्तर प्रदेश में पहला ऐसा विश्वविद्यालय है जहां पर 'नई शिक्षा नीति-2020' सबसे पहले लागू की गयी है । विश्वविद्यालयों में हो रही बेतहाशा फीस वृद्धि, घटते जनवाद और बढ़ते प्रशासनिक दमन को हम राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के प्रावधानों से समझ सकते हैं. देश भर के विश्वविद्यालयों में हो रही फ़ीस वृद्धि नयी शिक्षा नीति का परिणाम है जिसके मुताबिक शिक्षा पर जीडीपी का 6% और केन्द्रीय बजट का 10% ख़र्च होना चाहिए, किन्तु साथ ही उसमें यह भी कहा गया है कि यदि कर (टैक्स) कम इकठ्ठा हो तो इतना ख़र्च नहीं किया जा सकता। एक तरफ़ यह नीति, शिक्षा को प्रशासनिक जकड़बन्दी में क़ैद करने पर तुली हुई है वहीं दूसरी तरफ वित्तीय स्वायत्तता का राग अलाप रही है। पहले उच्च शिक्षा में यू जी सी द्वारा ग्राण्ट मिलता था लेकिन नयी शिक्षा नीति के तहत उच्च शिक्षा को सुधारने के लिए ‘हायर एजुकेशन फ़ाइनेंसियल एजेंसी (HEFA)’  बनी हुई है। दरअसल हेफ़ा अब विश्वविद्यालयों को अनुदान की बजाय क़र्ज़ देगी जो उन्हें 10 वर्ष के अन्दर चुकाना होगा। सरकार लगातार उच्च शिक्षा बजट को कम कर रही है। सरकार की मानें तो विश्वविद्यालय को अपना फ़ण्ड, फ़ीसें बढ़ाकर या किसी भी अन्य तरीक़े से जुटाना होगा जिसका बोझ अन्ततः विद्यार्थियों पर ही पड़ेगा। 

दरअसल गोरखपुर विश्वविद्यालय के  कुलपति को 'नयी शिक्षा नीति' को लागू करने की इतनी हड़बड़ी है कि वह छात्रों के हितों के ख़िलाफ़ किसी भी हद तक जा सकते हैं। गोरखपुर विश्वविद्यालय में पढ़ाई करने वाली छात्रों की एक बड़ी आबादी आम मेहनतकश परिवार, ग्रामीण मज़दूर-किसान परिवारों से आती है। विश्वविद्यालय प्रशासन का यह कदम छात्रों की इस आबादी को परोक्ष रूप से परिसर से बाहर कर देगा। मेहनतकशों के बच्चों को कैम्पस से बाहर धकेलने की यह प्रक्रिया इस बेतहाशा फ़ीस वृद्धि के पहले भी पिछले लम्बे समय से सेल्फ़ फाइनेंस कोर्सेज, डिप्लोमा कोर्सेज और अन्य विविध रूपों में जारी थी। 

दिशा छात्र संगठन सभी इन्साफ़पसन्द छात्रों और नागरिकों से आह्वान करता है कि एकजुट होकर विश्वविद्यालय के इस तुगलकी फरमान के ख़िलाफ़ आगे आयें। विरोध प्रदर्शन में राजू, विकास, राजकुमार, माया, मनोरमा, मुकेश, अरुण व राजू यादव आदि शामिल हुए।

                 भवदीय

                    राजू

         9455920657

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