इन हाथों की ताज़ीम करो
इन हाथों की तकरीम करो
दुनिया को चलाने वाले हैं
इन हाथों को तस्लीम करो
सदियों से गुज़र कर आये हैं, ये नेक और बद को जानते हैं
ये दोस्त हैं सारे आलम के, पर दुश्मन को पहचानते हैं
ख़ुद शक्ति का अवतार हैं ये, कब ग़ैर की शक्ति मानते हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो
राहों की सुनहरी रौशनियाँ, बिजली के जो फैले दामन हैं
फ़ानूस हसीं ऐवानों के, जो रंग और नूर के ख़िरमन हैं
ये हाथ हमारे जलते हैं, यह हाथ हमारे रौशन हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो
ये हाथ न हों तो मुह्मल' सब, तहरीरें और तक़रीरें हैं
ये हाथ न हों तो बेमानी, इन्सानों की तक़दीरें हैं
सब हिकमतो- दानिश, इल्मो हुनर, इन हाथों की तफ़सीरें हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो
यह सरहद-सरहद जुड़ते हैं और मुल्कों-मुल्कों जाते हैं
बाहों में बाहें डालते हैं और दिल को दिल से मिलाते हैं
फिर ज़ुल्मों-सितम के पैरों की ज़ंजीरें-गरां बन जाते हैं
इन हाथों की ताज़ीम करो.......
-अली सरदार जाफ़री
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.#Alisardarzafri #BirthAnniversary
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