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कर्तार सिंह सराभा की क्रान्तिकारी विरासत और हमारा समय

गदर पार्टी के नायक कर्तार सिंह सराभा के शहादत दिवस (16 नवम्बर ) पर दिशा छात्र संगठन की ओर से गोरखपुर विश्वविद्यालय के सामने स्थित पंत पार्क में 'कर्तार सिंह सराभा की क्रान्तिकारी विरासत और हमारा समय' विषय पर परिचर्चा रखी गई‌। इस परिचर्चा में गदर पार्टी की धर्म निरपेक्षता व कर्तार सिंह सराभा के जीवन पर विस्तार से चर्चा की गई।

कर्तार सिंह सराभा की क्रान्तिकारी विरासत और हमारा समय
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दिशा छात्र संगठन के विकास ने बाताया कि गदर पार्टी के नायक कर्तार सिंह सराभा का जन्म 24 मई सन 1896 में लुधियाना जिले के सराभा गाँव में हुआ था। लुधियाना से मैट्रिक पास करने के बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए सान फ्रांसिस्को अमेरिका चले गए। अमेरिका में लाला हरदयाल, मुहम्मद बरकतउल्ला, सोहन सिंह भकना आदि कई देशभक्तों ने मिलकर देश को आज़ाद कराने के लिए 'ग़दर पार्टी' की स्थापना की जो 1857 के सशस्त्र विद्रोह के बाद नये सिरे से सशस्त्र बग़ावत की ज़रूरत महसूस करती थी। गदर पार्टी द्वारा विभिन्न भाषाओं में ‘गदर’ नामक अख़बार निकाला जाता था। इसी गदर पार्टी से कर्तार सिंह सराभा भी जुड़ जाते हैं और गदर के पंजाबी संस्करण के सम्पादन का ज़ि‍म्मा करतार सिंह सराभा को सौंपा गया। अब कर्तार सिंह सराभा के जीवन का मकसद ही क्रान्ति करना था। सन् 1914-15 में कामागाटमारू और अन्य समुद्री जहाजों से गदर आन्दोलनकारी भारत में सशस्त्र विद्रोह करने के मक़सद से पहुँचे। लेकिन किरपाल सिंह की गद्दारी से विद्रोह से एक दिन पहले ही अंग्रेज़ों को भनक लग गयी और उन्होंने गदर के वीर सपूतों की धरपकड़ शुरू कर दी। कर्तार सिंह सराभा समेत अनेक गदरी गिरफ़्तार कर लिये गये। अपने मुकदमे में 19 वर्षीय कर्तार सिंह सराभा ने रत्ती भर भी डरे बिना छाती ठोंककर कहा कि उन्होने साम्राज्यवाद के ख़िलाफ़ विद्रोह किया है और ऐसी ज्वाला भड़कायी है जो उनके मरने के बाद भी नहीं बुझेगी। अंग्रेज़ जज दाँतों तले कलम दबाये बस देखता रह गया था। करतार सिंह के दादा इन्हें अंग्रेज़ों द्वारा इतनी कम उम्र में फाँसी की सज़ा दिये जाने पर काफी दुखी थे, जब वे जेल में इनसे मिले तो इन्होंने अपने दादा को समझाया कि मैं खाट में बूढ़ा होकर सड़-सड़कर नहीं मरना चाहता, यह मौत उस मौत से हज़ार गुना अच्छी है। गदर आन्दोलन के दौरान 200 से ज़्यादा लोगों ने कुबार्नी दी तथा बहुतों को अंग्रेजी हुकूमत ने जेलों में सड़ाया। 16 नवम्बर 1915  को कर्तार सिंह सराभा व महाराष्ट्र के गणेश विष्णु पिंगले और अन्य पाँच गदर आन्दोलनकारियों को फांसी दे दी गयी। नौजवान भारत सभा के संस्थापक शहीद भगतसिंह करतार सिंह सराभा को अपना प्रेरणास्रोत, गुरू, साथी और भाई मानते थे। उस समय के प्रताप, किरती जैसे कई राष्ट्रीय समाचार पत्रों में भगतसिंह के कुछ लेख करतार सिंह के नाम से भी प्रकाशित हुए थे।   

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 आज देश में धर्म–जाति के नाम पर नफरत का जहर घोला जा रहा है। महँगाई, बेरोज़गारी,शिक्षा–चिकित्सा जैसे बुनियादी मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए सत्ता–व्यवस्था ‘‘फूट डालो और राज करो’’ की वही अंग्रेजों वाली पुरानी चालें चल रही है। इस माहौल में दिशा और नौभास देश में जनता के बीच अमन–चैन–भाईचारा और एकता कायम करने के लिए उन बहादुर युवाओं और इंसाफ़पसन्द लोगों का आह्वान करती हैं। कर्तार सिंह सराभा और अन्य क्रान्तिकारियों के सपनों को पूरा करने के लिए नौजवानों को आगे आना होगा। उनके विचारों व सपनों को जन–जन तक पहुँचाना और उन पर अमल करना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी।    

कार्यक्रम में दीपक राजकुमार, माया, मनोरमा, अंजलि, प्रभाकान्त, शिवम, आशिया, राजू व यशवन्त आदि लोग उपस्थित रहे।   

   Written by : राजू

                       9455920657


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